सीता पुनि बोली में स्त्री प्रतिरोध के स्वर.

Authors

  • Supriya P.

Abstract

मृदुला सिन्हा ने पौराणिक नारी को मुख्यपात्र के रूप में प्रस्तुत किया है। सीता का जीवन भारतीय नारियों में श्रेष्ठ जीवन है। वह प्रतिकूल परिस्थितियों को बदलते हुए जीती है, एक सशक्त नारी के रूप में सीता का शौर्य और उनकी आत्मिक शक्ति आज की महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है। मृदुला सिन्हा की सीता जिन अवस्थाओं में जीती थी उसका पुनराख्यान वर्तमान भारतीय परिवेश में आवश्यक और महत्वपूर्ण हो उठा है। पुराण काल में स्त्री पर हुए अत्याचार को सीता के माध्यम से मृदुला सिन्हा ने इस उपन्यास में प्रस्तुत किया है। मृदुला सिन्हा, स्वयं सीता बनकर, सीता के मन के भावों को यहाँ प्रस्तुत करती हैं। भूमिका में लेखकीय संतुष्टि को बयान करती वे कहती हैं – “मेरे लेखकीय मानस को इस रचना से बहुत संतोष और सुख मिला  है। हृदय में स्थापित सीता-चरित को मस्तिष्कीय टकसाल पर भी ढाला  है। विश्व-इतिहास के सर्वोत्तम और सर्व शक्तिमान नारी के साथ-साथ चलना, उनकी स्मृतियों में डूबना-उतराना स्वर्गिक सुख तो था ही।”13 मृदुला सिन्हा अपने इस उपन्यास के माध्यम से महिलाओं के उत्थान को महत्व देती है। 'सीता पुनि बोली’ में शक्ति-संपन्ना एवं स्वाभिमानी सीता के प्रतिरोध के विभिन्न तेवर पाठक को आधुनिक सन्दर्भ में सोचने को मजबूर अवश्य करता है। 

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Published

05.01.2023

How to Cite

Supriya P. (2023). सीता पुनि बोली में स्त्री प्रतिरोध के स्वर. AKSHARASURYA, 2(01), 87 to 93. Retrieved from http://aksharasurya.com/index.php/latest/article/view/42

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