‘ख़ुदा सही सलामत है’ उपन्यास में नारी संघर्ष.
Keywords:
रवींद्र कालिया, नारी का संघर्षमय जीवन, पारिवारिक शोषण, तवायफों का जीवन, समाज में सम्मानAbstract
रवीन्द्र कालिया साठोत्तरी साहित्य के प्रसिद्ध कथाकार के रूप में जाने जाते हैं। जिन्होंने अपने कथा साहित्य में समाज के हर एक पहलू को बहुत ही गंभीरता के साथ चित्रित करने का प्रयास किया है। ‘ख़ुदा सही सलामत है’ उपन्यास में नारी के सामाजिक स्थिति को बहुत ही मार्मिकता के साथ स्त्री शोषण एवं उसके संघर्ष को दशार्या है। भारतीय समाज में स्त्री का सामाजिक एवं पारिवारिक रूप से कैसे शोषण होता है और समाज में स्त्री अपने गौरव एवं सम्मान के लिए कैसे संघर्ष करती है, जैसे की उपन्यास का पात्र अज़ीज़न एक तवायफ़ होते हुए भी अपनी पुत्री का जीवन एक सामान्य युवती के समान ही समाज में गौरव के साथ उसका विवाह करने की अपेक्षा रखती है। गुलाबदेही जैसी स्त्री पति के द्वारा मारपीट के बावजूद भी अपने पति के प्रति एक पत्नी का कर्तव्य निभाती है और साथ ही पति से पीड़ित स्वयं सम्मान के साथ में जीवन यापन करने का प्रयास करती है। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में स्त्री का शोषण कैसे किया जाता है इसका उदाहरण कोतवाल गुलाबदेही के व्यवहार एवं आचरण पता चलता है । पंडित की पत्नी पंडिताइन मास्टर के घर में साफ सफाई का काम करने पर मास्टर एवं उनके पुत्र के द्वारा किया गया लैंगिक शोषण, इसके बावजूद भी ऐसी बुरी स्थिति के साथ लढकर काम करने वाली पंडिताइन समाज के लिए स्त्री संघर्षि का परिचय कराती है। भारतीय नारी को परिवार में मात्र पति से ही नहीं बल्कि समाज में अन्य लोगों के द्वारा भी अनेक यातनाएँ सहनी पड़ती है और साथ में वह भी सामान्य लोगों की तरह ही एक गौरवमय जीवन जीने का संघर्ष करती है।